जानते हैं महाभारत युद्ध के बाद पांडव और भगवान कृष्ण का क्या हुआ
प्राचीन काल में लड़ी गई भीषण लड़ाईयों में से एक महाभारत की युद्ध महागाथा भी है। जिसमे सत्ता, शक्ति, सम्मान और जिम्मेदारी का अटूट संगम देखने को मिलता है। महाभारत न सिर्फ धर्म की जीत का प्रतीक है बल्कि यह सच्चे कर्म की अवधारणा देता है।
बचपन में हम सभी ने दादा-दादी, नाना-नानी और स्कूल के शिक्षक से महाभारत के बारे में सुना है। फिर भी महाभारत में इतने रहस्य छुपे है कि अभी भी हम उसकी घटना, संबंध और ज्ञान-विज्ञान के रहस्यों से अनजान है महाभारत के युद्ध के बारे में सब जानते हैं क्या आप जानते हैं जब महाभारत का 18 दिनों तक चलने वाला युद्ध समाप्त हुआ, तो उसके बाद क्या हुआ? कौन बना राजा और कितने दिन तक चला राज्य। आइये आपको महाभारत के उन रोचक रहस्यों से अवगत कराते हैं जो शायद ही आपने पहले कभी पढ़े या सुने हो।
1. हस्तिनापुर में पूरे 36 साल पांडवों का राज
जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तो युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का राजा घोषित किया गया। पांडवों ने हस्तिनापुर में पूरे 36 साल तक राज किया।
2. भगवान कृष्ण को गांधारी का श्राप
महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद जब युधिष्ठिर का राज तिलक किया जा रहा था। उस समय गांधारी अपने पुत्रों के म्रत्यु के शोक से व्याकुल होकर श्री कृष्ण के समक्ष आई तथा उन्हें श्राप देते हुए कहा जिस तरह तुमने मेरे कुल का नाश किया है उसी दर्द से तुम्हारे कुल को भी गुजरना पड़ेगा। कृष्ण के पास युद्ध को रोकने की दिव्य शक्ति थी।
3. यादव कुल का नाश
गांधारी के दिये श्राप का असर यादवों पर होने लगा था। श्राप के चलते द्वारका की हालत बिगड़ने लगी। हालात संभालने के लिए कृष्ण अपने सारे कुल को प्रभास ले गए लेकिन वहाँ भी हिंसा ने पीछा नही छोड़ा स्थिति ऐसी हो गयी यादव कुल एक दूसरे के खून के प्यासा हो गये और वहाँ तक पहुंच गए जहाँ उन्होंने पूरी नस्ल का ही संहार कर डाला। इस नरसंहार में सिर्फ कृष्ण, बलराम, दरूका और वभ्रू ही बच पाये थे।
4. भगवान कृष्ण की म्रत्यु
प्रभास नरसंहार के बाद कृष्ण ने वन में जाकर ध्यानमग्र का निर्णय लिया। जब कृष्ण ध्यान में लीन थे तब जारा नामक एक शिकारी ने वन में हिरन का शिकार करते समय भगवान कृष्ण को हिरन समझकर तीर चला दिया वह तीर सीधे कृष्ण के पैर में जाकर लगा जो उनकी मौत का कारण बना। तीर लगने के बाद भगवान कृष्ण ने शिकारी के सामने ही विष्णु का रूप धारण किया और नश्वर शरीर को त्याग दिया।
5. द्वारका का अंत और अर्जुन का प्रयास
जब अर्जुन ने प्रभास की भीषण नरसंहार के बारे सुना, तो उन्होंने उसे बचाने की सोची उस समय द्वारका जलमग्र हो रहा था और अर्जुन ने बुजुर्गो, महिलाओं और बच्चों को इंद्रप्रस्थ ले जाने का फैसला किया। जब यादवों का काफिला इंद्रप्रस्थ की ओर बढ़ रहा था तब लुटेरों ने काफिले पे हमला कर दिया और अर्जुन उनकी रक्षा करने नाकाम रहे। इस घटना के बाद अर्जुन को अपने योध्दाओ की क्षमता से विश्वास उठ गया।
6. परीक्षित का राज्याभिषेक और पांडवों की यात्रा
कृष्ण की मौत के बाद पांडव टूटने लगे। इसलिए उन्होंने राज-पाठ त्यागने का फैसला कर लिया। एक ऋषि ने पांडवों को सलाह दी कि आपका उद्देश्य पूरा हो गया है, इसलिए आपको अब हिमालय पर्वत की और यात्रा करनी चाहिए। पौत्र परीक्षित को राज-पाठ सौंप कर पांडव द्रौपदी के साथ अपनी अंतिम यात्रा के लिए हिमालय की और निकल पड़े।
7. स्वर्ग की सीढ़ी
पांडवों ने द्रौपदी और एक कुत्ते के साथ अपनी अंतिम यात्रा के रूप में स्वर्ग की सीढ़ियां चढ़ना शुरू की। स्वर्ग की सीढ़ी पांडवों के लिए चढ़ना इतना आसन नही था। स्वर्ग की सीढ़ी चढ़ने के दौरान धीरे-धीरे सभी युधिष्ठिर का साथ छोड़ने लगे शुरुआत द्रौपदी से हुई और अंत में भीम का निधन हुआ। पांडवों में सिर्फ युधिष्ठिर ही कुत्ते के साथ हिमालय के पार स्वर्ग पहुंच सका।
8. युधिष्ठिर की आखिरी परीक्षा
स्वर्ग के दरवाजे पर भगवान इंद्र ने युधिष्ठिर का स्वागत किया। युधिष्ठिर के साथ गया कुत्ता वहाँ गायब हो गया और वो कुत्ता वास्तव में यमराज थे। यमराज ने युधिष्ठिर की काफी प्रशंसा की और उन्होंने युधिष्ठिर को पहले नरक दिखाया वहाँ द्रौपदी और बाकी भाइयों को देखा युधिष्ठिर उदास हुए। लेकिन इंद्र के कहने पर कि अपने कर्मों की सजा भुगत वो जल्द ही स्वर्ग में दाखिल होंगे।
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