समस्या की जड़ नेहरु, इलाज खानदानी दवाखाना
खानदानी दवाखानों वालों की तर्ज पर पिछले कई सालों से सरकार व उनके मंत्री काम कर रहे है। जिस प्रकार खानदानी दवा वाले हर मर्ज का कारण जवानी का दुरुपयोग, गलत संगत को बताया करते थे। इसी तर्ज पर सरकार के मंत्री जी हर समस्या के पीछे नेहरु जी को जिम्मेदार बताने लगे है। खानदानी दवाखाना वालों के पास जिस तरह हर असाध्य बीमारी का रामबाण इलाज होता था। शायद इसी तरह समस्याओं का रामबाण इलाज हमारे मंत्री जी को भी मिल चुका है। सीधा सा हिसाब 'न मरीज रहे न ही मर्ज।'
हालाकि सड़कों किनारे खाली मैदानों में टेंट लगाकर असाध्य रोगों का गारंटी से इलाज करने वाले खानदानी दवाखाने वाले पिछले कुछ समय से दिखाई नहीं दे रहे है। क्या नागरिकता कानून में देश से बाहर तो न कर दिए गए? जिनके टेंट की दीवारों पर और बाहर रखे पोस्टरों में पहलवान नुमा हट्टे-कट्टे व्यक्ति का चित्र छपा होता था। कुछ इसी तरह सरकार द्वारा बड़े नेताओं के पोस्टर छपवा कर जगह-जगह चस्पा कर दिए जाते हैं। दवावाले ढेर सारी असाध्य बीमारियों और उनके लक्षणों के साथ उनके इलाज की सौ प्रतिशत गारंटी का इश्तहार भी चस्पा करवा लेते थे। जिसमें हर समस्या का रामबाण इलाज की गारंटी होती थी, उसी तर्ज पर सरकार उनकी योजनाओं का भ्रामक ढंग से प्रचार करती है। जिस तरह खानदानी हिमालय की ऊंचाई और तराई से खोजी गई, कुछ जड़ी-बूटियां टेंट में रखकर इलाज करने का दावा करते हुए ढेर सारे आश्वासन देते थे। उसी तरह सरकार देश के दो चार उद्योगपतियों की गारंटीके साथ सुनहरे देश का प्रचार करती नजर आती है। दोनों गारंटी 100 प्रतिशत देते है।
मरीज ठीक हुए या नहीं लज्जावश लोग बताते नहीं है। या कुछ लोग अतिशयोक्ति पूर्वक बखान करते नजर आते थे। इसी प्रकार सरकारी योजनाओं का हाल रहा है। लोग लज्जावश लाभ-हानि बताने से कतराते है। वहीं कुछ भक्तनुमा लोग टीव्ही, सोशल मीडिया और अक्षरों में अतिशयोक्ति पूर्वक बखान करने में जुटे रहते है।
हालाकि उनके पास इलाज कराने वे ही लोग जाते थे, जिन्हें अपने शरीर के बारे में भ्रामक रूप से बीमारियां होने का अंदेशा होता था। इनके पास अक्सर ग्रामीण, भटके युवा ही इलाज के लिए पहुंच जाया करते थे। हालाकि यह लोग भले भगवान पर अविश्वास कर लें, लेकिन रामबाण दवाओं और चमत्कारी दवावालों पर नहीं।
पिछले कई दिनों से खानदानी लोग न दिखे तो, मेरे मन में विचार आया कि शायद ये लोग कोरोना का इलाज खोजने हिमालय तो नहीं चले गए। और जल्द कोरोना की रामबाण दवा लेकर लौटते ही होंगे। शायद ये लोग खुद कोरोना से पीड़ित तो नही हो गए। इनके साथ कोई अनहोनी तो....। नहीं...हो.. गई।
इतना तो तय था ये लोग कितनी भी, कैसी भी दवा और इलाज का दावा करते रहे हो। लेकिन खुद की गरीबी की दवा नहीं खोज सके। यही कारण है कि उन्हें खानाबदोश जिंदगी जीना पड़ती थी, है और शायद जीना पड़ेगी। समाज, सरकार और खुद वे अपनी बेबशी, बच्चों की शिक्षा, पोषण आहार और गरीबी का समाधान आज तक नहीं खोज सके।
खानाबदोश खानदानी दवाखाना वालों, उनके परिवार की कथा-व्यथा पर विचार करते हुए मेरा ध्यान देश की समस्याओं के समाधान की ओर चला गया। तभी देश और प्रदेश के माननीय मंत्रियों, नेताओं के बयानों ने मेरा ध्यान खींचा। मुझे लगा कि खानाबदोश भले ही कही हों लेकिन उनका रामबाण इलाज का दावा, हर समस्या का एक ही समाधान का नुस्खा हमारे जनप्रिय, लोकप्रिय और महाज्ञानी नेताओं के हाथ लग गया है। तभी वे आत्मविश्वास से भरे मन से, विपक्ष के विश्वास पर बेधड़क हमला करते हुए बयान जारी कर देते है। और समस्या की जड़ पर आरोप जड़ते हुए जिम्मेदार देश के पहले प्रधानमन्त्री को ठहरा देते है। जैसे आजादी देते समय अंग्रेजों ने जाते-जाते हमारे गुल्लक में चंद सिक्के ही छोड़ हों और देश की पहली सरकार ने गुल्लक में पैसे जमा करने के स्थान पर गुल्लक ही फोड़ दिया हो।
ब्योंत की श्रृंखला में आगे जनसभाओं में शायद हमारे ज्ञानवान मंत्रीगण कहने वाले है-देश की गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, भुखमरी, अशिक्षा, कुपोषण और बीमारी का जिम्मेदार कौन? मीडिया जोर से हुंकार भरते कहेगी- देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु। हमारे प्रदेश के मंत्री जी कहेंगे-जून जुलाई में बारिश का न होना और जुलाई-अगस्त में अतिवृष्टि होना, सोयाबीन की फसलों का खराब होना, मौसम में बदलाव आने के पीछे जिम्मेदार कौन-कार्यकर्ता चिल्लाकर बोलेंगे, नेहरु। अगले बयान में नेताजी कहेंगे-अधिकारी-कर्मचारी ने रिश्वत ली। नेताओं ने सरकार बनाई या उलट दी, पुलिस ने निर्दोष जनता पर लाठीचार्ज किया, पेट्रोल-डीजल महंगा, कोरोना वायरस ने कहर बरपाया, आखिर इसका जिम्मेदार कौन है- सोशल मीडिया आवाज लगाएगी-, पंडित नेहरु, पंडित नेहरु। बैंक डूब गई, जीडीपी गिर गई, लंबी चुप्पी।
हर समस्या का हल, जुमलों का बल- नीति पर काम करने वाली हमारी सरकार, हमारे मंत्री, हमारे नेताओं को खानदानी दवाखाना वालों का रामबाण इलाज हाथ लग चुका है। न मरीज रहे न मर्ज की तर्ज पर समस्या समाधान- न गरीब रहे न गरीबी, इसलिए गरीब को ही हटा दो। या इतनी गरीबी बढ़ा दो ताकि हर गरीब को लगे वह तो ठीक है। महंगाई से बचने के लिए सरल उपाय जो वस्तु महंगी लगे उसे खरीदने की अंतिम शक्ति छीन लो। जब आप महंगी वस्तु खरीद ही न पाओगे तो महंगाई कैसी। उस वस्तु के बिना जीना सीख जाओगे। इसी तरह जनसंख्या खत्म कर दो- समस्या खत्म, बेरोजगार खत्म, समस्या खत्म। इसी के साथ मंत्री जी की प्रेस कांफ़्रेंस खत्म होने वाली थी कि आसमान से आवाज आई-विपक्ष को बोलने, जनता को समझने, लिखने वालों को लिखने, लोकतंत्र समर्थक मीडिया को न बिकने की शक्ति किसने दी? अब मंत्री जी से चुप रहा नहीं गया, वे बोल उठे-नेहरु ने।
- दिनकर 'सजल'